रस किसे कहते हैं

रस किसे कहते हैं? रस के भेद कितने प्रकार के होते हैं. परिभाषा उदाहरण सहित | ras kise kahate hain in hindi

परिभाषा— काव्य में आनंद की अनुभूति प्रदान करने वाले तत्व को रस कहते हैं। रस , छंद एवं अलंकारों की कार्वी रचनाओं का मुख्य एवं आवश्यक अव्यय हैं।

[रस का शाब्दिक अर्थ ≈ निचोड़ है]

पाठक या दर्शक या श्रोताओं के हृदय में स्थित स्थाई भाव ही विभाबादी से सयुक्त होकर रस के रूप का परिणत हैं।
*रस को वाक्य की आत्मा (प्राण तत्व) माना जाता है।
* संस्कृत में कहा गया है कि “रसात्मकम् वाक्यम् काव्यम्” मतलब “रसयुक्त वाक्य ही काव्य है„।

(हिंदी में) रस किसे कहते हैं? [परिभाषा, भेद, स्थायीभाव] – ras kise kahate hain

जानें— रस के भेद कितने प्रकार के होते है उनके स्थायी भाव

रस के ग्यारह भेद प्रकार होते है, सभी के स्थाई भाव नीचे दिए हैं-

रसस्थाई भाव
1. शृंगार रसरति
2. हास्य रसहास
3. करूण रसशोक
4. रौद्र रसक्रोध
5. वीर रसउत्साह
6. भयानक रसभय
7. बीभत्स रसजुगुस्ता या घृणा
8. अदभुत रसविशम्या या आश्चर्य
9. शान्त रसनिर्वेद
10. वत्सल रसवात्सल्य
11. भक्ति रसअनुराग/देव रति

• (उपन्यास और कहानी)  (जीवनी और आत्मकथा) में अंतर

आइए अब हम सभी रस के भेद को विस्तार से जाने एवम उनके उदाहरण का भी अध्ययन करें।

 

1. शृंगार रस

परिभाषा

नायक व नायिका जब सौंदर्य एवं प्रेम पूर्वक वर्णन जिस रस के अंर्तगत हो, श्रंगार रस हैं। सुंदर वन, बसंत ऋतु, प्राकृति, चहचहाते पक्षी जैसे वर्णन श्रृंगार रस  में आते है। स्थाई भाव रति हैं। रसराज या रसपति इसे बोलते हैं

उदाहरण

कहत नटत रीझत a खिझत, मिलत खिलत लजियात,

भरे भौन में करत है, a नैननु ही सौ बात,

शृंगार रस के भेद

संयोग श्रृंगारवियोग श्रृंगार

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2. हास्य रस

परिभाषा 

मनोरंजन के भाव हास्य रस के साथ। स्थाई भाव हास हैं। हास्य रस नव रसों में स्वभावत: सबसे ज्यादा सुखात्मक रस प्रतीत होता है। इसके तहत वेशभूषा, वाणी आदि कि विकृति को देखकर अंतरमन में जो आनद या प्रसन्नता के भाव आ रहे हो, उससे हास रस उत्पत्ति होती है।

मानव अधिकार दिवस manav adhikar divas kab manaya jata hai

उदाहरण

बुरे समय को देख a कर गंजे तू क्यों रोय।
किसी भी हालत में h तेरा बाल न बाँका होय।

हास्य रस के भेद 

1] आत्मस्थ2] परस्त

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3. करुण रस

परिभाषा

स्थाई भाव शोक हैं। जब अपने का विनाश या वियोग, अथवा प्रेमी से विछड़ने के भाव या दुखी बेदना उत्पन्न हो करुण रस हैं। अर्थात किसी प्रिय के चिर विरह या मरण से जो शोक आए, उसे करुण रस कहते है। या पुनः मिलने कि आशा समाप्त जाए वहा करुण रस पाया जाता है।

उदाहरण

रही खरकती हाय शूल-सी:, पीड़ा उर में दशरथ के।
ग्लानि, त्रास, वेदना – विमण्डित,: शाप कथा वे कह न सके।।

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4. वीर रस

परिभाषा

उत्साह स्थाई भाव है। किसी रचना या वाक्य में वीरता का भाव उत्पन्न हो रहा हो वहां वीर रस उत्पन्न होता है। इस रस में युद्ध जैसे कठिन कार्य करने के लिए मन में उत्साह की भावना आए, शत्रु पर विजय प्राप्त करने का यस इसी रस के तहत प्रकट होता है।

उदाहरण

बुंदेले हर बोलो के मुख @ हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वो g तो झाँसी वाली रानी थी।।

वीर रस के भेद – भरतमुनि ने वीर रस के तीन प्रकार बताये हैं

दानवीरधर्मवीरयुद्धवीर

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5. रौद्र रस

परिभाषा

स्थायी भाव क्रोध है। जब किसी अपमान या निंदा क्रोध उत्पन्न हो रहा हो, रौद्र रस होता हैं। इसमें क्रोध के कारण मुख लाल हो जाना, जशास्त्र चलाना, दाँत पिसना, भौहे चढ़ाना आदि के भाव उत्पन्न होते हैं।

उदाहरण

श्रीकृष्ण के सुन वचनa अर्जुन क्षोभ से जलने लगे।
सब शील अपना भूलa कर करतल युगल मलने लगे॥

संसार देखे अब हमारेd शत्रु रण में मृत पड़े।
करते हुए यह घोषणा वेg हो गए उठ कर खड़े॥

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6. अद्भुत रस

परिभाषा

आश्चर्य स्थाई भाव है। इस रस में रोमांच, गद्गद होना, औंसू आना, काँपना, आँखे फाड़कर देखना आदि के भाव व्यक्त होते हैं। मन में विचित्र या आश्चर्य वाले भाव पैदा हो अदभुत रस कहा जाता है।

उदाहरण

देख यशोदा शिशु के मुख मेंg, सकल विश्व की माया।
क्षणभर को वह बनी अचेतनg, हिल न सकी कोमल काया॥

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7. भयानक रस

परिभाषा

भयानक रस “भय” स्थाई भाव होता है। भयानक अथवा बुरे व्यक्ति या किसी दुखी घटनाओं का स्मरण जिस रस के तहत हो भयानक रस हैं।इस रस अंतर्गत मुँह सूखना, कम्पन, पसीना छूटना, चिन्ता जैसे भाव उत्पन्न होते हैं।

उदाहरण

अखिल यौवन के रंग उभारh, हड्डियों के हिलाते कंकाल।
कचो के चिकने काले, hव्याल, केंचुली, काँस, सिबार ॥

भयानक रस के दो भेद हैं 

स्वनिष्ठपरनिष्ठ

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8. बीभत्स रस

परिभाषा

जुगुप्सा या घृणा इसका स्थाई भाव हैं। घृणा और जुगुप्सा का होना आवश्यक हो बीभत्स रस है।

उदाहरण

भोजन में श्वान लगेs मुरदे थे भू पर लेटे,
खा माँस चाट लेते थे, kचटनी सैम बहते बहते बेटे,

आँखे निकाल उड़ जाते, hक्षण भर उड़ कर आ जाते,
शव जीभ खींचकर कौवे, kचुभला-चभला कर खाते,

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9. शान्त रस

परिभाषा

मोक्ष और आध्यात्मभावना की उत्पत्ति शान्त रस है, उस को शान्त रस नाम देना सम्भाव्य है। स्थायी भाव निर्वेद होता है।
शान्त रस साहित्य में प्रसिद्ध 9 रसों में अंत का रस माना जाता है – “शान्तोऽपि नवमो रस:।”
इसका कारण यह है कि भरतमुनि के “नाट्यशास्त्र” में,  जो रस विवेचनौ का स्रोत है, नाट्य रसों के रूप में केवल आठ (8) रसों का ही वर्णन मिलता है।

उदाहरण

जब मै था तब हरि नाहिंh अब हरि है मै नाहिं,
सब अँधियारा मिट गयाh जब दीपक देख्या माहिं।

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10. वत्सल रस

परिभाषा

माता पिता का प्रेम, बच्चों हेतु प्रेम, गुरुजन एवं शिक्षक हेतु प्रेम भावना स्नेह होता है, यह स्नेह ही परिपुष्ट बनकर वात्सल्य रस बनाता हैं। इसका स्थायी भाव वात्सल्यता (अनुराग) होता है।

उदाहरण

बाल दसा सुख निरखिg जसोदा, पुनि पुनि नन्द बुलवाति
अंचरा-तर लै ढ़ाकी सूर, hप्रभु कौ दूध पियावति

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11. भक्ति रस

परिभाषा

ईश्वर भगवान की अनुराग एवं अनुरक्ति के प्रति प्रेम वर्णन के भाव जहा भक्ति हो, स्थायी भाव देव रति है।

उदाहरण

अँसुवन जल सिंचीसिंची प्रेम-बेलि बोई
मीरा की लगन लागी, jहोनी हो सो होई

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